Thursday 27 March 2014

अंजाना डर


अंजाना डर

मैं एक हिन्दू हूँ और ये मेरी सच्ची कहानी है 
मैं पैदा हुआ, मुझे नहीं पता था कि हिन्दू क्या है और मुस्लमान क्या है
जब थोडा बड़ा हुआ तो स्कूल मैं पढ़ाया गया, हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई , आपस मैं सब भाई भाई. थोडा दिम्माग मैं आया कि अछा हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई  कुछ होते हैं.
थोडा और बड़ा हुआ, निबंद "एस्से" लिखा, कुछ लिखा हिन्दू मुस्लमान के बारे मैं
कभी धरातल पे हमे अवगत नहीं कराया गया कि हिन्दू क्या है और मुस्लमान क्या है. इतना पता चल गया था कि हम मंदिर जाते है मुस्लमान मस्जिद जाते हैं.
धीरे धीरे हमे ये अहसास दिलाया गया , किसी एक ने नहीं समाज ने  (जाने अनजाने), कि मुस्लिम कोई हौवा है, मंदिर मैं आया तो पता नहीं क्या हो जायेगा.
बाबरी टूटी, हम स्कूल मैं थे , न्यूज़ देखि, जयादा समझ नहीं आया, हमे जाने अनजाने बताया गया कि अच्छा हुआ हमने हिंदुओं कि जमीन वापस ले ली.
कुल मिला के धीरे धीरे मेरे मन मैं एक अंजना से दूरी बना दी गयी मुस्लिम्स के लिए, और मैंने जयादा कभी सोचा नहीं. फिल्मे बनी थी नाना पटेगर वाली लेकिन समझ नहीं आती थी उस समय
क्योंकि आप हिन्दू मेजोरिटी एरिया मैं रहते हो, तो अधिकतर दोस्त हिन्दू होते हैं, कभी कोई न्यूज़ मिलेगी दोस्त से  मुस्लिम कि तो हेट स्पीच्च कि मिलेगे आपको. दूरियां और बढ़ेंगी 
मैं इंग्लैंड आया जॉब मैं ट्रान्सफर होकर, काफी मुस्लिम्स से रूबरू हुआ , मेरे ऑफिस मैं "आई आई टीका एक बंदा थाआईटी हेड  Ekh…..  Bari ... मैं उससे मिला , उसके साथ खाना खाया, मौज मस्त भी कि, धीरे धीरे और काफी लोगो से मिला. पता चला कि जो अंजाना डर दिल मैं था वो झूठा था
अब ३४ साल का हुआ तो समझ आया कि पॉलिटिक्स का किया धरा है, ये फ़िल्म मैं ही नहीं असलियत मैं है.
हिन्दू मुस्लिम आजादी से पहले एक थे, साथ मिलके लड़े थे, क्या कोई कारन है कि हिन्दू मुस्लिम आपस मैं बैर करें? अंग्रेज़ों कि लगायी आग है जिसमें आज राजनेतिक पार्टिया घी डाल रही है
मेरा निवेदन है ऐसे घटिया पॉलिटिक्स को जड़ से उखाड़ के फेंक दो, दिल के अनजाने डर को निकाल दो.
ये मेरी सची कहानी है और मैं एक आम आदमी हूँ,


मेरा नाम रविंदर दहिया है